भव हरि शरणं, भव हरि शरणं

ध्रुव जी और भगवन नारायण ( चित्र साभार - गीता प्रेस ) त्यज प्रपंचं मिथ्याचारं भव हरि शरणं, भव हरि शरणं । त्वां गतिं न मतिं अन्यत्रं भव हरि शरणं भव हरि शरणं ॥ कलि-मल हरणं भव सिन्धु तरणं हरि स्मरणं सर्वथा करणं । हरिपद वरणं परम सुकरणं भव हरि शरणं, भव हरि शरणं ॥ मिथ्या वेषं दुःख अशेषं सकल प्रदेशं दुर्निवेशं । कुत्र अन्यत्र परम निवेशं

तेरी हर बात प्यारी थी

तेरी हर बात प्यारी थी इस जग से ही न्यारी थी तेरे सोहबत में बिताए जो लम्हे हमने तमाम उम्र के खुशियों पे भारी थी तू जान थे अरमान थे शागिर्दों के दोंनो जहान थे सिफर तेरे जाने से पैदा होगा इतना बडा शिद्दते-गम के इस अहसास से हम वाकिफ़ न थे मसीहा तू हरदिल अजीज हर आंखो का नूर था मुकद्दस मशविरा तेरा जमाने में बड़ा मशहूर था

आश्रम निर्माण रूपी महायज्ञ में अपनी आहुति दें

!! ॐ श्री गुरुवे नमः !! आज दिनांक 8 सितम्बर 2020, श्री गुरुदेव के वाग्लोक गमनोपरांत तीसरा छाया कर्म निमित्त तर्पण, ब्राह्मण भोजन एवं भजन - संकीर्तन का आयोजन नवनिर्माणधीन आश्रम, मधेपुर में किया गया । मधेपुर में हम भवनहीन न रहें इसके लिए जुलाई माह 2020 से “आश्रम निर्माण कोष” का गठन कर दिया गया है, जिसके अंतर्गत कुछ श्रद्धालु प्रत्येक महीना अपना श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे है और आज बहुत सारे शिष्य-शिष्याओं ने भी इस महान लक्ष्य को प्राप्त करने और आश्रम निर्माण के कार्यक्रम को गति देने के लिए स्वेक्षापूर्वक हाथ बढ़ाये है, श्रीकपिल कानन कार्यकारिणी समिति आपके इस अनुपम प्रयास का हृदय से स्वागत करती है ।

Someone is unhappy.. Let them be..

Someone is unhappy.. Let them be.. Someone is judging you.. Let them judge.. Someone thinks you are wrong.. Let them think.. Someone has problem with your deeds.. Let them have.. Someone is demotivating you.. Let them be demotivated themselves.. All they have is unhappiness, inappropriate sense of judgement, wrong thinking & they themselves do nothing, so they are angry. They think you are breaking the bounds, in a nutshell they want you to satisfy their ego, which you don’t.

श्री गुरुदेव के ज्ञान यज्ञ में आपकी आहुति

एक यज्ञ जिस से हम में से अधिकतर लोग पूर्व परिचित हैं, और जिसमें हम हवन सामग्री की आहुति, अग्नि में प्रदान कर देवताओं को तुष्ट करतें हैं, उनका यजन करतें हैं परंतु उसके अलावा भी एक महायज्ञ है जो श्री गुरुदेव के द्वारा शुरू किया गया और वो अपने पार्थिव शरीर के जीर्ण होने पर भी, अपने अंतिम समय तक उसे निरंतर करते रहे, जिस से आप में से बहुत सारे शिष्य परिचित ही होंगे, वो है – “ज्ञान यज्ञ” .

अर्वाचीन संत साहित्य में योगर्षि श्रीकपिल का अवदान

विषय-प्रस्तावना हिन्दी साहित्य ही नहीं अपितु विश्व की समस्त साहित्य-संपदा अपने संरक्षण-संवर्धन हेतु संतों का ऋणी रहा है। साहित्यकारों ने यदि साहित्य की काया को सजाया-सँवारा है तो संतों ने इसकी आत्मा का श्रृंगार किया है। प्रत्येक सभ्यता-संस्कृति के पोषण में, उसकी कुरीतियों के निवारण में तत्कालीन समाज के वैसे नायक-नायिकाओं का हम प्रादुर्भाव देखते हैं जो त्याग-बलिदान की उदार भावना से भरे हुए, सांसारिक मोह-माया को तुच्छ मानने वाले, विशाल व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। जनसामान्य से हटकर उनमें जो मौलिक, चिंतन, बौद्धिक प्रखरता और अतः प्रेरणा की तीव्रता पाई जाती है वही उन्हें संत कोटि का पद प्रदान करती है। हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल यदि कबीर, तुलसी, सूर की महान रचना से स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान है तो अब तक काल-प्रवाह में बहुत से संत का साहित्य किसी अज्ञात क्षेत्र में, स्थानीय स्तर पर ही चेतना क्रांति का संवाहक बना हुआ है। न तो यह समाज की आज सामाजिक-धार्मिक कुप्रथाओं, भेदभाव, छुआछूत, सांप्रदायिक वैमनस्य से मुक्त हुआ है और न ही इन पर कुठाराघात करने वाले संतों की महत्ता गौण हुई है। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर 20वीं शताब्दी तक हमने दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, रामतीर्थ, मुक्तानन्द, योगानन्द, श्री अरविन्द, महात्मा गांधी, रमन महर्षि, प्रभुपाद जी जैसे अनेकानेक संत विभूतियों का साक्षात्कार किया जिनकी वक्तृता, लेखनी एवं सत्संग-संस्मरण ने भारतीय संस्कृति-सभ्यता के नवोत्थान में अपना अमूल्य योगदान दिया, साथ ही विश्व के अन्य प्रांत में भी वैदिक संस्कृति का झंडा लहराया। स्वातंत्रयोत्तर भारत की ऐसी ही संत विभूतियों में से एक हैं- योगर्षि श्रीकपिल जिनके साधवोचित उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं विलक्षण कृतित्व से आज समस्त हिंदी जगत कृतकृत्य हो रहा है। उनकी रचना का विपुल भंडार हमें 21वीं सदी में प्राप्त हो रहा है जो अपने काव्य-सौंदर्य एवं संदेश की सार्थकता के कारण गहन शोध का विषय बना है। समकालीन आलोचकों एवं शोधार्थियों के दृष्टि-पटल से अनवलोकित ये काव्य-संपदा शोधश्री से विभूषित हो और भी अधिक जनसेवी सिद्ध होगी, इसमें संदेह नहीं है।

दूध की बाढ़ आई है..

आईये आज एक ऐसी कहानी पढ़तें हैं जो हममें से कईयों ने पढ़ी – सुनी होगी, और इस कहानी और इसमे निहित सन्देश की चर्चा हम बाद में करेंगे . तो कहानी इस प्रकार है – किसी देश के राजा को आदत थी की वो अपना वेश बदलकर अपने राज्य में घूमने निकल जाता और अपने प्रजाजनों का हालचाल लेता . इस प्रकार वो दयालु और परोपकारी राजा, अपनी प्रजा के सुख दुःख से ही अवगत नहीं होता अपितु कहाँ पर कौन सा अधिकारी अपना काम ठीक से नहीं कर रहा इसका भी पता उसे चल जाता, और वो आवश्यक सुधार , जरुरतमंदों की मदद ठीक – ठीक कर पाता .

हमारा मानवीय धर्म

आश्रम से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका “सप्त-रश्मि” के प्रथम प्रकाशन के लिए सभी सदस्यों को ढेर सारी शुभकामनाएं. ये पत्रिका श्री गुरुदेव के आशीर्वाद और आप लोगों के सतत प्रयास का शुभ फल है. इस लेखनी का एकमात्र उद्देश्य अपनी कुछ भावनाओं और अनुभवों को साझा कर आश्रम के अन्य सदस्यों से अपने को जोड़ना और साथ-साथ अपने उत्थान के लिए प्रयास करना है. यह शरीर और जीवन हमें ईश्वर से मिला अनोखा व सर्वोत्तम उपहार है और इसे सुन्दर और सफल बनाना हमारा धर्म है.

प्रथम आलेख

आज अपने आश्रम से प्रकाशित हो रही इस “सप्त रश्मि” पत्रिका के लिए प्रथम आलेख लिखते हुए अपार हर्ष हो रहा है । श्री गुरुदेव को नमन कर, उनके द्वारा लिखित विघ्नहर्ता श्री गणेश जी और वाग्देवी माता सरस्वती का ध्यान जो “गुलाल” में प्रकाशित हो चुका है यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ । और श्री गुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ की उनके आशीर्वाद से यह पत्रिका अपने उदेश्य में सफल हो ।