उद्धव, बिसरब कोना हम ब्रज के नेह

( चित्र साभार - इस्कॉन ) माईक कोड़ बाबा के गेह ब्रज गोपिकाक अद्भुत प्रेम गोप सखा सबहक स्नेह उद्धव, बिसरब कोना हम ब्रज के नेह ॥ पुलकाबय हमर देहक सभ अंग चिन्मयी राधा केर अलौकिक संग थिर न रहय हमर मन आ देह बिसरब कोना हम ब्रज के नेह ॥ गैया मैया संग क्रीड़ा अनंत साओन भादव वा हिम बसंत मानहु स्वर्ग उतरल सदेह बिसरब कोना हम ब्रज के नेह ॥

माधव, जीवन भेल व्यर्थ व्यतीत

चित्र साभार - अनस्प्लैश माधव, जीवन भेल व्यर्थ व्यतीत बहु-विकल्प, विषय, व्यसन में डूबल अछि हमर अतीत जीवन भेल व्यर्थ व्यतीत ॥ नेह-बन्ध के मोह प्रबलता आकर्षण रस रसनाक सबलता मेटलक सभ सत्य प्रतीति जीवन भेल व्यर्थ व्यतीत ॥ ओझल मन सं रहल मायावश भजनानन्दक दिव्य अमृतरस प्रभु चरण सं भेल नहिं प्रीत जीवन भेल व्यर्थ व्यतीत ॥ वरण नहिं कएल प्रभु के आनंद

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय

चित्र साभार - इस्कॉन हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय मायातीत हम भनहिं कहाबी ब्रज माया ने बिसराय हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥ मैया यशोदा के अपरूब ममता भेटय कतय ओहन रूचि रमता माखन मिसरी नहि मोन सं जाय हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥ ब्रज जन रेणु गोप संग धेनु हंसैत खेलाइत बजावति वेणु दृश्य एक एक मोन पड़ि जाय हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥

नारायणी निर्मल सुभाषिनि

भगवती माता ( चित्र साभार - विकिपीडिया ) कृष्ण प्रिया तू रास विलासिनी ॥ जनजन भासिनि दिव्य प्रकाशिनि ॥ हरिप्रिया तू श्रृष्टि विलासिनि ॥ सिंधु सुता कमलासन वासिनि ॥ शिव भामिनी शक्ति स्वामिनि ॥ महागौरी तू ताण्डवलासिनि ॥ माता तू सब रूप में भासिनि ॥ रामवल्लभा सीता सुवासिनि ॥ विद्या-दात्रि मुक्ति प्रदायिनि ॥ वाग्-देवी प्रबुद्ध प्रभासिनि ॥ दुर्गा रूपा दुर्गति नाशिनि ॥ काली रूपा पाप विनाशिनि ॥ जय अम्बे अमृत उद्भासिनि ॥

श्याम मेरो आस है, श्याम विश्वास है

भगवन श्री कृष्ण ( चित्र साभार - गीता प्रेस ) श्याम मेरो आस है । श्याम विश्वास है ।। मेरो गति मेरो मति । मेरो हर श्वास है ।। प्राण में है ज्ञान में है । उर में निवास है ।। सर्वत्र वोहि छायो हैं । कणकण सुवास है ।। रोम रोम व्रह्माण्ड धारी । शशि-चन्द्र दास है ।। वोहि सगुन वोहि निरगुन । निरंजन प्रकाश है ।।

॥ श्री हरि सुमर श्री हरि सुमर ॥

“भगवन नारायण और उनके 10 अवतार” - चित्र साभार - “विकिपीडिया” मन धीर धर मन ध्यान कर नाम सुधा का पान कर । भटका न मन को दर - ब - दर श्री हरि सुमर श्री हरि सुमर ॥ व्यर्थ भव भय त्याग कर ज्ञान भक्ति संवार कर । हरिपद शरण का वरण कर श्री हरि सुमर श्री हरि सुमर ॥ यह भव भंवर है अति प्रबल

आत्म-ज्योति जाग्रत राखू

चित्र साभार “अनस्प्लैश” भव -कूप के घोर निशा में आत्म-ज्योति जाग्रत राखू । गुरु प्रवर के दिव्य वचन हृदय मध्य प्रज्ज्वल राखू ॥ जीवात्मा केर शाश्वत स्वरूपक सुमिरण चिर संबल राखू । मन बुद्धि चित्त अहंकार के आत्म लीन सदिखन राखू ॥ बहिर्गत भेल इन्द्रियगण कें आत्म सुख सं संयत राखू । आत्म भाव के परमात्म भाव सं संम्पृक्त आ समुन्नत राखू ॥ गुरु वर के उपरोक्त वचन के

माधव के चरणाश्रय नहिं जाय

चित्र साभार “अनस्प्लैश” थिर नहि रहय चंचल मन माधव करू उपाय । भव भंवर में डूबि रहल ई जीव कतेक असहाय ॥ सभ किछु जनितहुं मृगतृष्णा में मरु-थल दौगल जाय । विषय भोग के विषम जाल में छटपट करैछ निरुपाय ॥ कखनहुं नहिं ई तृप्त हुयअ मन जनम जनम भटकाय । माधव अहींक नाम एक आश्रय बुझितहुं ई भरमाय ॥ हे नाथ कोना बांचब एहि फंद सं

कहो काल ने क्या नहीं लीला है ?

चित्र साभार - “अनस्प्लैश” विस्मृति और सम्मोह से ग्रस्त हैं हम नाहक नासमझी से त्रस्त हैं हम बेकार की बातों में व्यस्त हैं हम हरि स्मरण के चिर सुख में क्यों नहीं न्यस्त हैं हम ? एक बार समझ चुके वही नियन्ता है कि हर सांस उसी से चलता है मन ! फिर क्यूँ तू भटकता है ? व्यर्थ दुःख ही पाता है । नियत हर काल हर गति

आरति करू गुरुदेव गुणी की

आरति करू गुरुदेव गुणी की ब्रह्म तत्व आध्यात्म मुनी की ।। सुख बरसावथि हिय हरसावथि शिष्य जनक सन्मार्ग देखावथि । परम दिव्य परमार्थ प्रणी की आरति करू ~ ब्रह्म तत्व ~ ।। मिथला मध्य शुभ अवतारल ईश भक्ति जनजन में पसारल । साधु समर्थ सद् ज्ञान सुधी की आरति करू ~ ब्रह्म तत्व ~ ।। योग सांख्य संदेश संवाहक भव -मुक्ति जीवन उद्धारक । आत्म-ज्ञान सद्-ज्ञान धनी की