जिंदगी की भागदौड़
खुशी और गम की लुकाछिपी ।
मन का कसैलापन
और, और पाने की आपाधापी ॥
रात दिन गुजरते हैं यहां
खुशियों का पता ढूंढते ।
खुश रहें हमेशा ही हम
सब यही सोचा करते ॥
खुशी मिलती और छिनती
फिर से क्षणिक खुशी ढूंढा करते ।
अपने अपने बर्तन सभी
ज्यादा पाप, थोड़े पुण्य से भरा करते ॥
अपनी खुशी के लिए यहाँ
सभी अपनों का गला काटते ।
मन मैला पर कपड़े साफ
नैतिकता पर पैबंद साटते ॥
चकाचौंध करने वालों के
भीतर घना अंधेरा रहता ।
बाहर सबकुछ ठीक ठाक
पर भीतर सड़ा कचरा रहता ॥
अपने कचरे को हर कोई
सीधा खड़ा सोना कहता ।
दुर्गंध के आदी, जन्म जन्म से
अपनी कस्तूरी को सपना कहता ॥
परस्त्री, परपुरुष मिलाप को
आधुनिकता का आवरण है यहां ।
सतीत्व और मर्यादा से परे
नर, नारी का आचरण है यहां ॥
अनैतिक कामांधता को ही
सच्चा प्रेम अब यहां कहते ।
रिश्ते नातों को ताक पर रख
ये कामदेव को शर्मसार करते ॥
कुतर्क करने में माहिर
कुबुद्धि के दास हैं ये ।
अपकर्म को सत्कर्म कहें
कलियुग के भी बाप हैं ये ॥
परमेश्वर भी इन्हें
इनके ही जैसा चाहिए ।
खुद को न बदलेंगे ये कभी
इन्हें सबकुछ इनके शर्तों पर चाहिए ॥
कबीर को घोड़े से घसीटा
इन्होंने ईसा को सूली पर लटकाया ।
सुकरात को भी जहर दिया इन्होंने
और मंसूर को काफिर बतलाया ॥
किसी ने कृष्ण को मारना चाहा
किसी ने राम की सीता छीनी ।
वेश बनाकर दरवेशों सा
घूम रहे यहां कई कालनेमी ॥
इन्हें रौशनी नहीं पसंद
ये अंधेरों के आदी हैं ।
सारे कुकर्म करने के बाद
ये सुख से सोने के आदी हैं ॥
मानव मानवता भूल चुका है
पशुता का अंध अनुकरण होता ।
पाप के नवीन समीकरण गढ़ करके
दुराचार का नित नवीकरण होता ॥
दूध की बाढ़ तो सचमुच आई थी
पर कोहरे का ये देश भी है ।
यहां आंखों पर पट्टी बंधी हुई सबके
और हृदय विषाक्त विशेष ही है ॥
फिर कभी नहीं आना हो यहां
इस कुटिल संसार में ।
इस घने कुहासे में
इन बेइमानों के बाजार में ॥
हे करुणामय, हे गुरुदेव
आपसे प्रार्थना है बारंबार ।
हाथ पकड़, हमें साथ ले चलें
इस असार संसार से पार ॥