आदमी है
हार जाता है कभी - कभी
कभी अपनों से
कभी खुद से
कभी अपनी आदत से
कभी अपने अहंकार से
कभी अपनों की जिद्द से
कभी हालत से
कभी जज्बात से
कभी तकरार से
कभी मैले मन से
कभी गंदे प्राण से
कभी कुबुद्धि से
कभी कुतर्क से
कभी डर से
कभी इससे
कभी उससे
तो कभी सबसे..
लेकिन आदमी है
तो समझौते कर लेता है
और फिर से हार जाता है ।