तुम जब पैदा होकर आए
मात पिता कुटुम्ब हर्षाए ।
लोगों ने बधाइयाँ भेजीं
सबने मिलकर सोहर गाए ॥
जब तुम जग को छोड़ जाओगे
कुछ लोग तुम्हारे लिए रोयेंगे ।
कुछ दिन तक घर में मातम होगा
फिर सब तुमको भूल बैठेंगे ॥
तुम कौन हो ये पता नहीं तुम्हें
औरों का पता तुम पूछ रहे ।
मानव, मन को रोक कर देखो
कहाँ - कहाँ तुम भटक रहे ॥
दर्शन की विवेचना करके
मुक्त कोई नहीं होता है ।
जैसे पिंजरे का तोता कभी
आसमान में नहीं उड़ता है ॥
प्रेम की परिभाषा से
बंशीधर नहीं मिलतें हैं ।
कमजोर अभिलाषा से जैसे
कभी योग नहीं सधते हैं ॥
वैध जी की दवा भी तो
खाने से ही काम करती है ।
लेकर घर मे रख लेने से भर
रोग को कहाँ आराम करती है ॥
आज खुद को इतना तपाओ
की तुम कुंदन हो जाओ ।
फिर कब मौका मिलेगा तुम्हें
कब काल - कलवित हो जाओ ॥
हँसने दो तुम दुनियाँ को
जी भर कर कोसने दो ।
खुद को बदल डालो तुम आज ही
बांकियों को अभी सोचने दो ॥
क्यूँ इतराते तुम्हारे पास मक्खन है
अरे उसको भी तो मथना होगा ।
घृत की धार तो तभी टपकेगी
अग्नि पर उसको भी तो तपना होगा ॥
प्रतिपल कठिन अभ्यास से ही
तुम खुद से जीतोगे ।
अपनी बेड़ियाँ तुम ही तो हो
इसे तुम ही खोलोगे ॥
पहले अपनी सुलगी तो बुझा लो
फिर औरों की लगी बुझाना ।
पहले खुद को तो समझ लो
फिर औरों को समझाना ॥
सपने को हकीकत में बदलो
वरना यूँ ही रह जाओगे ।
अपने अटूट निश्चय से तुम
निश्चित ही विजय पाओगे ॥
चित्त की तुम चिता जला लो
अमर मृत्यु का आलिंगन करो ।
गुरु चरणों पर निर्भर रहकर
अंगार का तुम अंजन करो ॥
बहुत व्यस्त रहते हो दुनियाँ में
कभी पल भर तो विश्राम करो ।
राम नाम सत्य तो सबका ही होगा
आओ आज मरघट में आराम करो ॥
अपने सभी कुटिल कर्मों से
कुछ देर के लिए ही छुट्टी ले लो ।
प्रभु का नाम तो मुफ्त मिलता है
आओ तुम भी घुट्टी पी लो ॥
आत्मदेव से मित्रता कर लो
आज उनके लिए कुछ काम करो ।
खुद को ठगना छोड़ कर तुम
अपने दुर्गुणों का काम तमाम करो ॥
किसकी कठपुतली बन चुके तुम
क्यूँ कालिमा को ढो रहे हो ।
क्यूँ अपनी आत्मा को हतते तुम
क्यूँ दुःख के बीज बो रहे हो ॥
दुनियाँदारी में आज कुशल तुम
आज अहंकार आसमान पर होगा ।
मत भूलो तुम्हें फिर जाना ही है
मंजिल आखिरी वही श्मशान ही होगा ॥