मस्तक चन्द्र वस्त्र गेरुआ साजे
बैठे हैं गुरुवर अविनाशी ।
अगरु कपूर की सुगंधि सुवासित
हो रही है संध्या आरती ॥
शिष्यों संग बैठे हैं गुरुदेव
हो रही ज्ञान की वर्षा सी ।
धवल ज्योति से ज्योतिर्मय हो रहे
श्री गुरुदेव हमारे गुणराशी ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥
दीन - दुखी जन आते - जाते
पाते सब सुख आनन्दराशी ।
पतित पावन कलि मल हारण
परात्पर ब्रह्म हैं पूर्णराशि ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥
उनके ही चरणों की धूलि
छुड़ा देती यम की फांसी ।
चक्र भेदन कर देते गुरुवर
बनाते प्रकाश के अधिवासि ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥
निर्मल चरित्र का पाठ पढ़ाते
परम पावन वो पवित्रराशी ।
कहते यही ईष्ट उपासना है
समझ जाओ हे पृथ्वीवासी ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥
सम दृष्टि सम भाव सिखाते
गुरुदेव हमारे मंडपवासी ।
कहते यही तीर्थ और व्रत है
इसके बनो तुम अभ्यासी ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥
हम शिष्यों की नैया को
पार लगाएं हे अनंत, हे कैलाशी ।
हाथ जोड़ हम विनती करते
हृदय में रख निज छवि राशि ॥ ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥