खोज - खोज कर थक जाओगे
फिर भी नहीं मिल पाएगा ।
माला, कंठी, जप, ध्यान धरो
पर कुछ भी नहीं हो पाएगा ॥
सारे दर्शन उलट - पुलट लो
अजी वाद - विवाद कितने भी करो ।
शात्रार्थ जितने भी कर लो
दर - दर चाहे जितने फिरो ॥
कभी - कभी काशी कभी द्वारका
कभी सौराष्ट्र, सोमनाथ जाओ ।
कभी मुरलीधर को कर जोड़ कर
कभी कभी हरिद्वार भी हो आओ ॥
लाख जतन कर लो कुछ भी
आँखें मूंद कर सांसे लो ।
कपड़े बदलो, संन्यासी बन जाओ
चाहे खुद को झांसे दो ॥
नहीं मिलेगा तुम्हें कुछ भी
चाहे जितना जोड़ लगाओ ।
नारेबाजी जितना भी कर लो
चाहे जितने आँसु बहाओ ॥
चाहते हो क्या तुम
खुद को मिटाना ।
अरे, हरि को पाना है
खुद हरि हो जाना ॥
अपने मलिन स्वभाव को त्यागकर
अपना दीपक खुद बन जाओ ।
और देखो कौन किसे ढूंढ रहा
अब तो ये समझ भी जाओ ॥