krishna_with_friend

चित्र साभार - इस्कॉन

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय

मायातीत हम भनहिं कहाबी

ब्रज माया ने बिसराय

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥


मैया यशोदा के अपरूब ममता

भेटय कतय ओहन रूचि रमता

माखन मिसरी नहि मोन सं जाय

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥


ब्रज जन रेणु गोप संग धेनु

हंसैत खेलाइत बजावति वेणु

दृश्य एक एक मोन पड़ि जाय

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥


प्राणहुं सं अधिक गोपिका प्रेम

हुनक नहिं बूझी कुशल आ क्षेम

छन - छन युग सम बीतल जाय

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥


राधा संग हमर अलौकिक राग

संग - संग यमुना ताल तड़ाग

सभटा ओहिना छन छन सुझाय

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥


एक जिनक भृकुटि विलास पर

सकल श्रृष्टि प्रलय मचि जाय

से ब्रज गोपी लै कानथि निरुपाय!

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥


कहथि दिवाकर लीला माधव

केकरो सं नहिं बूझल जाय

ब्रज नहिं बिसरल जाय

हे ऊधो, ब्रज नहिं बिसरल जाय ॥

krishna_in_braj

चित्र साभार - इस्कॉन