भगवन श्री कृष्ण ( चित्र साभार - गीता प्रेस )
श्याम मेरो आस है ।
श्याम विश्वास है ।।
मेरो गति मेरो मति ।
मेरो हर श्वास है ।।
प्राण में है ज्ञान में है ।
उर में निवास है ।।
सर्वत्र वोहि छायो हैं ।
कणकण सुवास है ।।
रोम रोम व्रह्माण्ड धारी ।
शशि-चन्द्र दास है ।।
वोहि सगुन वोहि निरगुन ।
निरंजन प्रकाश है ।।
सुरसरि जिन्ह चरनन सौं निकसी ।
धन्य भू आकाश हैं ।।
नारदादि सनकादि संत ।
सतत सद् भास हैं ।।
नूतन नित नित चिरंतन ।
प्रभु का विलास है ।।
शरणागत है दास दिवाकर ।
जिनके न दूजै आस हैं ।।