चित्र साभार “अनस्प्लैश”
थिर नहि रहय चंचल मन
माधव करू उपाय ।
भव भंवर में डूबि रहल ई
जीव कतेक असहाय ॥
सभ किछु जनितहुं मृगतृष्णा में
मरु-थल दौगल जाय ।
विषय भोग के विषम जाल में
छटपट करैछ निरुपाय ॥
कखनहुं नहिं ई तृप्त हुयअ मन
जनम जनम भटकाय ।
माधव अहींक नाम एक आश्रय
बुझितहुं ई भरमाय ॥
हे नाथ कोना बांचब एहि फंद सं
कोनो बाट ने सूझाय ।
त्राहि त्राहि कय रहल दिवाकर
एहन जीवन नहिं जीयल जाय ॥
हे मुकुन्द माधव मोहन मुरारी
एहि पापी के अहीं टा उद्धारी ।
बहुत नाच नचओलक ई मन
माधव के चरणाश्रय नहिं जाय ॥