चित्र साभार “अनस्प्लैश”
भव -कूप के घोर निशा में
आत्म-ज्योति जाग्रत राखू ।
गुरु प्रवर के दिव्य वचन
हृदय मध्य प्रज्ज्वल राखू ॥
जीवात्मा केर शाश्वत स्वरूपक
सुमिरण चिर संबल राखू ।
मन बुद्धि चित्त अहंकार के
आत्म लीन सदिखन राखू ॥
बहिर्गत भेल इन्द्रियगण कें
आत्म सुख सं संयत राखू ।
आत्म भाव के परमात्म भाव
सं संम्पृक्त आ समुन्नत राखू ॥
गुरु वर के उपरोक्त वचन के
नित आचरित - यथावत् राखू ।
भव -कूप के घोर निशा में
आत्म-ज्योति जाग्रत राखू ॥