girl sitting and thinking

चित्र साभार - “अनस्प्लैश”


विस्मृति और सम्मोह से ग्रस्त हैं हम

नाहक नासमझी से त्रस्त हैं हम

बेकार की बातों में व्यस्त हैं हम

हरि स्मरण के चिर सुख में क्यों नहीं न्यस्त हैं हम ?


एक बार समझ चुके वही नियन्ता है

कि हर सांस उसी से चलता है

मन ! फिर क्यूँ तू भटकता है ?

व्यर्थ दुःख ही पाता है ।


नियत हर काल हर गति

हर चक्र है

बस स्थिर नहीं तुम्हारा मन

जो कुटिल अति वक्र है ।


यह संसार महज प्रवास है

प्रभु धाम स्थाई आवास है

अन्य किसका भरोसा

किसकी आस है ?


विषय-रंजन में जो आनंद हम पाते

उनकी क्षणभंगुरता से अंत हम पछताते

सभी अंतरंगता प्रियता खो जाते

हाय ! काल में क्या न देखा समाते ?


स्थान काल और पात्र की जग क्रीड़ा है

विषम होने पर बस पीडा ही पीड़ा है

अनुनय अनुबंध महज एक भ्रम है

कहो काल ने क्या नहीं लीला है ?


candles in lake

चित्र साभार - “अनस्प्लैश”