आईये आज एक ऐसी कहानी पढ़तें हैं जो हममें से कईयों ने पढ़ी – सुनी होगी, और इस कहानी और इसमे निहित सन्देश की चर्चा हम बाद में करेंगे . तो कहानी इस प्रकार है – किसी देश के राजा को आदत थी की वो अपना वेश बदलकर अपने राज्य में घूमने निकल जाता और अपने प्रजाजनों का हालचाल लेता . इस प्रकार वो दयालु और परोपकारी राजा, अपनी प्रजा के सुख दुःख से ही अवगत नहीं होता अपितु कहाँ पर कौन सा अधिकारी अपना काम ठीक से नहीं कर रहा इसका भी पता उसे चल जाता, और वो आवश्यक सुधार , जरुरतमंदों की मदद ठीक – ठीक कर पाता .

एक दिन राजा ने किसान का वेश धारण किया , और निकल पड़ा पैदल, चलते – चलते कब नगर पीछे छूट गए और गाँव शुरू हो गए, राजा को इसका अहसास न हुआ. वो ग्रामीण जीवन के सुरम्य और शांत वातावरण का आनंद लेता हुआ और भी आगे निकल गया .

नदी , नाले आदि पार करता हुआ वो जंगल पहुँच गया, शाम भी हो आई थी और राजा को भूख भी जोरों की लग आई थी . अब जाकर राजा को होश आया की वो अपने राजधानी से बहुत दूर निकल आया है . राजा रात्रि – विश्राम और भोजन की तलाश में आगे बढ़ता रहा .

दूर – दूर तक फैले हुए जंगल और तरह – तरह के जानवरों की आती हुई आवाजें उस रात को और भी भयानक बना रहे थे . दूर कहीं प्रकाश टिमटिमाता देखकर, राजा उधर ही बढ़ चला .

नजदीक पहुँचने पर उसने देखा की एक फूस की कच्ची झोपड़ी के बाहर एक दीपक जल रहा था, भूख से व्याकुल राजा ने दरवाजा खटखटाया . भीतर से एक युवा किसान और उसकी पत्नी बाहर आए . राजा ने उन्हें बताया – “ मैं परदेशी हूँ, रास्ता भटक गया, भूख – प्यास से बेहाल हूँ, कुछ खाने और रात्रि – विश्राम की जगह मिल जाए तो बड़ी कृपा होगी . सुबह होते ही मैं चला जाउंगा” .

युवा किसान और उसकी पत्नी दोनों असमंजस में थे, उनके पास रात्रि भोजन के नाम पर कुछ सूखी रोटियां थीं जो की खुद उनके लिए भी कम पर रही थी और शयन के लिए सिर्फ एक टूटी हुई खाट, और उस पर अतिथि देवता .

किसान की पत्नी ने लोटे में पानी लाकर दिया और अपना सारा भोजन राजा के सामने रख दिया . किसान बोला – “ भाई हम गरीब किसान हैं, आज हमारे पास बस यही कुछ रोटियां हैं.” भूखे राजा को उनकी गरीबी और साफ नीयत दोनों दिखाई दे रही थी पर भूख ने जोर मारी और राजा ने रोटियां खत्म कर दी , पानी पीकर और सूखी रोटियां खाकर आज राजा को असीम शांति मिली .

किसान और उसकी पत्नी दोनों ने भूखे रहकर, अपना भोजन उसे दे दिया ये बात राजा से छिपी न रही . किसान ने टूटी खाट को ठीक करते हुए कहा – “ आप यहाँ रात्रि विश्राम करें, और खुद दोनों बाहर जाकर नीचे धरती पर सो गए .

राजा उनकी गरीबी, अतिथि सत्कार , दयालुता से बहुत प्रभावित हुआ . उसने लेटे – लेटे विचार किया की – “ अब मैं वृद्ध हो चला, मेरी कोई संतान भी नहीं जो मेरा उत्तराधिकारी बने, मेरे बाद मेरी प्रजा की देखरेख करे . और किसी को भी अपना उत्तराधिकारी यूँ ही नहीं बनाया जा सकता, किसी दयालु, नेक और प्रजा को संतान समझ कर सेवा करने वाले को ही इस राज्य की बागडोर सौंपी जा सकती है .” राजा को उस युवा किसान में अपनी परछाईं नजर आ रही थी .

सुबह होने पर राजा ने किसान को अपना असली परिचय देते हुए अपना अंगूठी भी उसे दिया और कहा – “ कभी किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो, राजधानी आकर मुझसे जरुर मिलना, द्वारपाल इस अंगूठी को देखकर तुम्हे नहीं रोकेगा .”

इस घटना को काफी समय हो चुका . राजा अब भी उस युवा किसान के बारे में सोचता रहता . किसान जिस क्षेत्र में रहता था वहां पर सभी लोग कद्दू की खेती करते थे , और इस वर्ष मौसम के प्रतिकूल होने से सबकी फसल ख़राब हो गई . किसान तो गरीब था ही, फसल ख़राब होने से उसके भोजन पर भी संकट उत्पन्न हो गया . किसान और उसकी पत्नी चिंतित रहते और जैसे – तैसे अपने दुःख भरे दिन काट रहे थे . एक दिन किसान की पत्नी को राजा वाली बात याद आई, उसने किसान को अंगूठी देते हुए समझाया की क्यूँ ना राजा के पास जाकर कुछ मदद माँगी जाय, उन्होंने हमें वचन दिया था . किसान भी उसकी बातों से सहमत हुआ, फिर सशंकित होता हुआ बोला – “ यह तो बहुत पुरानी बात है, क्या राजा को अबतक अपने वचन स्मरण होंगे ?” पत्नी ने कहा की तुम ये अंगूठी दिखा कर याद दिला देना और माँगने से पहले उनसे वचन मांग लेना जिससे वो बाद में मुकर ना जाएँ .

किसान राजधानी आकर, राजा के महल के द्वार पर खरा होकर विस्मय से उसके महल, गुम्बद, नक्काशी आदि देख रहा था . द्वारपाल ने पूछा तो उसने राजा की दी हुई वही अंगूठी दिखाई और राजा से मिलाने की बात की . राजसी अंगूठी देखकर, द्वारपाल ने आदरपूर्वक उसका स्वागत किया और राजा से मिलाने उसे राजदरबार ले गया .

किसान को देखते ही राजा प्रसन्न हो उठा, उसने सोचा की अच्छा हुआ ये खुद आ गया, इसे यहाँ राज – पाट समझाकर मैं अब अवकाश लूँगा, इश्वर भजन करूँगा, वानप्रस्थ हो जाऊंगा .

राजा ने उससे कुशल - क्षेम पूछा, किसान ने कहा – “महाराज , अबकी बार हमारी फसल ख़राब हो गई, बहुत ही मुश्किल आन पड़ी है , हमलोग भोजन को तरस जातें हैं , आप ने पूर्व में हमें मदद का आश्वासन दिया था , इसीलिए मैं आज यहाँ आया हूँ , आप से कुछ मांगने , परंतु आप पहले मुझे वचन दीजिए की आप मांगने के पश्चात मुकरेंगे नहीं .”

राजा के आश्वस्ति के बाद किसान ने माँगा – “ महाराज आप मुझे दो हजार कद्दू दिलवा दीजिये, उसे बेच कर मैं अपना समय काट लूँगा, अगले वर्ष भगवान की कृपा रही तो अच्छी फसल होगी, फिर कोई दिक्कत न होगी . और मुझे कुछ नहीं चाहिए . परंतु महाराज, आप ने, देने का वचन दिया है , आपको दो हजार कद्दू देने ही होंगे .”

( किसान, चूँकि कद्दू की खेती करता था, उसके पिता, दादा, परदादा सभी कद्दू की ही खेती करते थे और उसके क्षेत्र में सभी किसान भी कद्दू की ही खेती करते थे, और उसी से उन सभी का जीवन व्यतीत होता था, इसीलिए उसके समझ में कद्दू ही बहुत अनमोल था, उसे कद्दू से बढ़कर, किसी अन्य वस्तु का भी कोई मोल हो सकता है, ऐसा नहीं लगता था )

राजा बहुत मायूस हुआ, कहाँ वो, किसान के सेवा भाव, दयालुता, परोपकारी स्वभाव से प्रभावित होकर उसे अपना सम्पूर्ण राज – पाट देकर, अपना उत्तराधिकारी घोषित कर, अपने राज्य का राजा बनाना चाहता था, और कहाँ किसान अपने कद्दू और राजा मुकर ना जाए, इस बात से सशंकित था . खैर, राजा ने किसान को दो हजार कद्दू और ढेर सारा धन देकर विदा किया और अपने उत्तराधिकारी की तलाश में निकल पड़ा . इस कहानी को हम में से कईयों ने पहले विभिन्न रूप में पढ़ा – सुना होगा, परंतु सिर्फ उस किसान की मुर्खता पर अफसोस कर के रह गए होंगे .

लेकिन हमारी बात यहीं पर ख़त्म नहीं हो जाती, श्री गुरुदेव ने लिखा है –

दूध की बाढ़ आई है, कोहरे के देश में …

मतलब भागवत कृपा की, भागवत संयोग का महान क्षण, आया है, परंतु जिस प्रकार सफेद रंग के कोहरे , धुंध के कारण, सफेद रंग का दूध किसी को दिखाई नहीं दे रहा ठीक उसी प्रकार आत्मज्ञानी गुरु के दुर्लभ संपर्क में आकर भी लोग, संसार के रंग में रंगे, ठीक कहानी के उस किसान की भांति, भागवत लाभ नहीं अपितु सांसारिक लाभ की ही आशा रखतें हैं .

वो संसार में इस प्रकार लिप्त रहतें है की जिस समय उन्हें, बिना किसी भगीरथ प्रयत्न, और अधिकारी – अनाधिकारी विचार के सहज ही आत्मज्ञान प्राप्त हो सकता है, जिस ज्ञान के लिए मुनिजन, जन्मों – जन्मों तक तपस्या करतें हैं, उस दुर्लभ और अमूल्य ज्ञान को छोड़, भागवत प्राप्ति को छोड़, वो सदैव संसार में लिप्त जीव सिर्फ सांसारिक लाभ की ही आशा रखतें हैं .

सांसारिक लाभ को ही सर्वोच्च समझने वाले ये लोग दूध की बाढ़ भी आ जाने पर प्यासे ही रह जातें हैं . कोई – कोई ऐसा भी सोचतें हैं की हमें किस प्रकार से ये दुर्लभ प्राप्ति हो सकती है, हम तो उस लायक ही नहीं हैं, परंतु खुद पर ही संशय करने वाले, ये लोग, आत्मज्ञानी गुरु की उपस्थिति की महत्ता को ठीक - ठीक समझ नहीं पाते .

अतः हमें किसान और राजा के इस कहानी से सबक लेकर, विचार करना चाहिए, और इस दिव्य भागवत मुहूर्त में कद्दू (संसार) की चिंता को कुछ देर के लिए ही सही, किनारे छोड़, दूध के इस बाढ़ (आत्मज्ञानी गुरु के सान्निध्य) में डूबकर के दुग्धपान ( भगवत कृपा पान )करना चाहिए .