नगरी हो मधेपुर सी

नगरी हो मधेपुर सी, मंडप का कोना हो । जहाँ चरण हों गुरुदेव के, वहाँ मेरा ठिकाना हो ॥१॥ प्रातः की आरती हो, महाकाल का पूजन हो । संध्या की आरती से, दिन मेरा समापन हो ॥२॥ अभिषेक हो महादेव का, जहाँ हवन हो यजन हो । गुरुदेव का सानिध्य हो, श्रद्धा पुष्प अर्पण हो ॥३॥ ग्रंथों की रचना हो, आध्यात्म की गंगा हो । कलि काल के दोष जहाँ, निर्मल हो चंगा हो ॥४॥

आदमी

आदमी है हार जाता है कभी - कभी कभी अपनों से कभी खुद से कभी अपनी आदत से कभी अपने अहंकार से कभी अपनों की जिद्द से कभी हालत से कभी जज्बात से कभी तकरार से कभी मैले मन से कभी गंदे प्राण से कभी कुबुद्धि से कभी कुतर्क से कभी डर से कभी इससे कभी उससे तो कभी सबसे.. लेकिन आदमी है तो समझौते कर लेता है

इस असार संसार से पार

जिंदगी की भागदौड़ खुशी और गम की लुकाछिपी । मन का कसैलापन और, और पाने की आपाधापी ॥ रात दिन गुजरते हैं यहां खुशियों का पता ढूंढते । खुश रहें हमेशा ही हम सब यही सोचा करते ॥ खुशी मिलती और छिनती फिर से क्षणिक खुशी ढूंढा करते । अपने अपने बर्तन सभी ज्यादा पाप, थोड़े पुण्य से भरा करते ॥ अपनी खुशी के लिए यहाँ

आगे को आगे आ जाने दो

तुम जब ठानते हो कुछ कर गुजरने की । तुम जब सोचते हो ऊपर उठने की ॥ बस कर गुजरो तुम बाँकियों को अभी सोचने दो । ये दुनियां है, यूँ ही रहेगी गुलामों को चक्की पीसने दो ॥ पतझड़ को पीछे ही छोड़कर वसंत का आगमन हो जाने दो । तूफान तो यूं ही आते - जाते अब असंभव को संभव हो जाने दो ॥

श्री गुरुदेव कवच

श्री गुरुदेव कवच हे गुरुदेव, आप सर्वसमाधिसिद्ध होकर भी साधारण मनुष्य की भाँति लोक - व्यवहार करने वाले, पात्र – अपात्र का भेद न देखते हुए जीवों को अपने संकल्प मात्र से परमगति प्रदान करनेवाले, संसार के लोगों के द्वारा न पहचाने जाने वाले, योगर्षि श्रीकपिल नाम से प्रसिद्ध, अपने अनन्त स्वरुप को शिष्यों से भी छुपाने वाले, आर्तजनों के दुखों को, उनके अपकर्मों के कष्टप्रद भोगों को, अपने संकल्प से दूर कर और उस नारकीय भोग को स्वयं भोगने वाले, आप परमेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ, प्रणाम करता हूँ ।

आज तो बस आज में रहो

आज तुम अपने आप से बात करो आज तुम अपने साथ रहो दिनभर । आज तुम खुद के लिए ही सोचो आज जगो अपने साथ रातभर ॥ आज कुछ अपने लिए ही करो आज तुम अँधेरे में न रहो । आज ही अपना दीपक जलाओ आज जीवन को प्रकाशित तो करो ॥ आज खुद का इलाज करो तुम आज ही अपनी सफाई करो । आज अपने चित्त को निहारो तुम

मंजिल आखिरी वही श्मशान ही होगा

तुम जब पैदा होकर आए मात पिता कुटुम्ब हर्षाए । लोगों ने बधाइयाँ भेजीं सबने मिलकर सोहर गाए ॥ जब तुम जग को छोड़ जाओगे कुछ लोग तुम्हारे लिए रोयेंगे । कुछ दिन तक घर में मातम होगा फिर सब तुमको भूल बैठेंगे ॥ तुम कौन हो ये पता नहीं तुम्हें औरों का पता तुम पूछ रहे । मानव, मन को रोक कर देखो कहाँ - कहाँ तुम भटक रहे ॥

मस्तक चन्द्र वस्त्र गेरुआ साजे

मस्तक चन्द्र वस्त्र गेरुआ साजे बैठे हैं गुरुवर अविनाशी । अगरु कपूर की सुगंधि सुवासित हो रही है संध्या आरती ॥ शिष्यों संग बैठे हैं गुरुदेव हो रही ज्ञान की वर्षा सी । धवल ज्योति से ज्योतिर्मय हो रहे श्री गुरुदेव हमारे गुणराशी ॥ मस्तक चन्द्र .. ॥ दीन - दुखी जन आते - जाते पाते सब सुख आनन्दराशी । पतित पावन कलि मल हारण परात्पर ब्रह्म हैं पूर्णराशि ॥ मस्तक चन्द्र .

आपके चरणों की धूलि

आपके चरणों की धूलि हम माथे पर लगायेंगे । चल पड़े हैं अब आपकी ओर हम पहुंच ही जायेंगे ।। गुरुदेव आपका मिलना हमें कर चुका हमारा उद्धार । एक आप ही सहारा हैं प्रभुजी सुन लीजिए हमारी पुकार ।। आपके चरणों की .. ।। भाव नहीं, न प्रेम ही है न ही हम भक्ति से भरे । ज्ञान विज्ञान किसे कहतें हैं हम तो अज्ञानी ठहरे ।। आपके चरणों की .

अब तो ये समझ भी जाओ

खोज - खोज कर थक जाओगे फिर भी नहीं मिल पाएगा । माला, कंठी, जप, ध्यान धरो पर कुछ भी नहीं हो पाएगा ॥ सारे दर्शन उलट - पुलट लो अजी वाद - विवाद कितने भी करो । शात्रार्थ जितने भी कर लो दर - दर चाहे जितने फिरो ॥ कभी - कभी काशी कभी द्वारका कभी सौराष्ट्र, सोमनाथ जाओ । कभी मुरलीधर को कर जोड़ कर